आओ धरा पे...
आओ धरा पे...
आओ धरा पे कृष्ण जी,तेरी धरा को चाह है,
आकर उबारो कष्ट से,चारो तरफ बस आह है।
काली घटाओं से घिरा है,जिंदगी का व्योम यह-
अब तो सुनाई पड़ रही यहाँ,चाँद की कराह है।।
इस विश्व पे है पड़ रही छाया किसी शैतान की,
यह है दिखे साज़िश कुदरती,या किसी हैवान की।
आकर बचा लो नाथ अब,अभिशप्त इस संसार को-
आशीष दे अब शुष्क कर दो,कष्ट-सिंधु अथाह है।।
तेरा बनाया लोक यह,रक्षक तुम्हीं तो नाथ हो,
जो डस रहा है इस समय,तक्षक कोई तो नाग हो।
तेरी महिमा नाथ अद्भुत,तुम तो करुणा-सिंधु हो-
फण को कुचल कर नाग के,कर दो सुगम जो राह है।।
देखते बनती नहीं है,यह विकट अब नाश-लीला,
आता नहीं कैसे कसें ,जो हुआ संबंध ढीला।
गीता का वाचन कर के फिर,मंत्र कोई फूँक दो-
कर दो क्षमा अपराध सारे,जो हुआ गुनाह है।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Shashank मणि Yadava 'सनम'
29-Jul-2023 06:47 AM
बहुत ही सुंदर और बेहतरीन रचना
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Reena yadav
28-Jul-2023 09:58 PM
👍👍
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HARSHADA GOSAVI
28-Jul-2023 04:54 PM
Nice one
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